इक आग का दरिया है
इक आग का दरिया है
कविता - इक आग का दरिया है
कवि - रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
विरह मिलन है,
मिलन विरह है,
मिलन विरह का,
विरह मिलन का ही जीवन है।
मैं कवि हूँ
और तीन-तीन बहनों का भाई हूँ,
हल्दी, दुब और गले की हंसुली से चुम-चुम कर
बहिनों ने मुझे प्यार करना सिखाया है।
मैंने कभी नहीं सोचा था
कि मेरे प्यार का सोता सुख जाएगा,
कि मेरे प्रेम का दूर्वांकुर मुरझा जाएगा।
लेकिन पूंजीवादी समाज की चौपालों,
और सामन्तवादी समाज के दलालों!
औरत का तन और मुर्दे का कफ़न
बिकता हुआ देखकर
मेरे प्यार का सोता सुख गया,
मेरे प्रेम का दूर्वांकुर मुरझा गया।
मैंने समझा प्यार व्याभिचार है,
शादी बर्बादी है,
लेकिन प्रथमदृष्टया मैंने तुमको देखा,
तो मुझे लगा कि
प्यार मर नहीं सकता
वह मृत्यु से भी बलवान होता है।
मैं तुम्हें इसलिए प्यार नहीं करता
कि तुम बहुत सुंदर हो,
और मुझे बहुत अच्छी लगती हो।
मैं तुम्हें इसलिए प्यार करता हूँ
कि जब मैं तुम्हें देखता हूँ,
तो मुझे लगता है कि क्रांति होगी।
तुम्हारा सौंदर्य मुझे बिस्तर से समर की ओर ढकेलता है।
और मेरे संघर्ष की भावना
सैकड़ों तो क्या,
सहस्त्रों गुना बढ़ जाती है।
मैं सोचता हूँ
कि तुम कहो तो मैं तलवार उठा लूँ,
तुम कहो तो मैं दुनिया को पलट दूँ,
तुम कहो तो मैं तुम्हारे कदमों में जान दे दूँ,
ताकि मेरा नाम इस दुनिया में रह जाए।
मैं सोचता हूँ,
तुम्हारे हाथों में बंदूक बहुत सुंदर लगेगी,
और उसकी एक भी गोली
बर्बाद नहीं जाएगी।
वह वहीं लगेगी,
जहाँ तुम मारोगी।
लेकिन मेरे पास तुम्हारे लिए
इससे भी सुंदर परिकल्पना है प्रिये!
जब तुम्हें गोली लगेगी,
और तुम्हारा खून धरती पर बहेगा,
तो क्रांति पागल की तरह उन्मत हो जाएगी,
लाल झंडा लहराकर भहरा पड़ेगा
दुश्मन के वक्षस्थल पर,
और
तब मैं तुम्हारा अकिंचन
प्रेमी कवि-
अपनी कमीज फाड़कर
तुम्हारे घावों पर मरहमपट्टी करने के अलावा
और क्या कर सकता हूँ।
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