मेरा पहला स्कूल और महिलासशक्तिकरण
मेरा पहला स्कूल और महिलासशक्तिकरण
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मेरा जिस स्कूल में पहली बार पक्का दाखिला हुआ,
वो स्कूल उर्दू था,
मेरा नाम भी उर्दू था,
कुछ अध्यापक उर्दू नाम वाले थे,
और कुछ हिंदी नाम वाले भी थे,
स्कूली तालीम के शुरुआती चार साल मैंने उसी स्कूल में बिताये,
मेरा पाला न जातिवाद से पड़ा और न ही धर्म के भेदभाव से,
न ही यही बताया गया की तुम लड़के हो लड़कियों से दूर रहो,
कुछ खट्टे मीठे दोस्त भी बने थे,
जो एक चाक के टुकड़े के लिए दोस्ती तोड़ लेते थे,
और निम्बू मस्ती के एक चटपटे दाने के लिए जोड़ लेते थे,
मुझे याद है एक दिन स्कूल में मेरी एक बार चप्पल खोई थी,
और उसे चुरा कर अपना बताने वाली एक लड़की थी,
जब मैंने विरोध करना शुरू किया तो उसने बड़ी बारीकी से झूठ बोला,
अरे उसके पापा कल शाम ही तो ये लाये थे,
चप्पल नया था तो मेरा कलेजा फटा का फटा रह गया,
उसकी बड़ी बहन आयी उसने भी उसी झूठ का पक्ष लिया,
मैं अकेला सच के साथ झूठ के सामने हार गया,
मेरे निम्बू मस्ती के भागीदार दोस्त मुझे चिड़ा रहे थे,
ए लड़की से झगड़ा किया,,,लड़की से झगड़ा किया,
चप्पल गया और मैं नंगे पैर घर आ गया,
अनजाने में ही इसी घटना से सालो बाद मैने सीखा,
की महिला सशक्तिकरण के नाम पर लड़के भी पीसे जाते हैं,
लडकिया भी झूठी हो सकती है,
और महफ़िल में लड़ाई एक लड़के और एक लड़की के बीच हो,
तो दोषी हमेशा लड़का ही होगा,
इसे ही शोषण कहते हैं,,,,।
By - कशिश बागी
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