एक जमीं मेरी भी है
एक जमीं मेरी भी है
जहां बारिशें छतों से बिस्तर पर नहीं टपकती,
जहां न्याय मांगने वालों के बदन पे लाठियां नहीं पड़ती,
जहां सिर्फ दो जून की रोटी जुटाने में जूते नहीं घिसते,
जहां भूख और इलाज के बिना कोई नहीं मरता,
जहां आंखे सिर्फ खुशियों से ही नम होती है,
जहां तकलीफ और दर्द से कोई वाकिफ नहीं है,
जहां लोग सिर्फ जीवन को ऊंचा करने की बाते करते हैं,
जहां मिलन के गीत के बीच जातीवाद और धर्म आड़े नहीं आता,
जहां बच्चे धार्मिक कट्टर न होकर विज्ञान की बाते करते हैं,
जहां प्रेम बिन मांगे सूरज की किरण सा मिल जाता है,
जहां लोगो को ईश्वर के प्रकोप का डर नहीं दिखाया जाता,
ऐसी पागलपन और सनक से भरी खयालों की
एक जमीं मेरी भी है.....¡!
By -kashish Bagi
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