मेरे पसंदीदा क्रिकेटर्स
मेरे पसंदीदा क्रिकेटर्स
मैं एक भारतीय हूँ और भारत में क्रिकेट की जड़ें किस गहराई तक फैला हुआ है ,इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। देश की आबादी का हर दूसरा लड़का क्रिकेट का शौकीन है। भले वो खेलता न हो लेकिन क्रिकेट देखता जरूर है। क्रिकेट के अलावा किसी भी खेल में इंडीया हार जाए कानो पे जू तक नहीं रेंगता ,लेकिन क्रिकेट में आपका पसंदीदा खिलाड़ी भी जल्दी आउट हो जाए तो जू छोड़िये सांप-बिच्छू सब रेंगता है।मैं भी इसका अपवाद नहीं हूँ। सन 2008 से 2011 तक क्रिकेट का बुखार मुझे भी 102 डिग्री वाला था। 1 रुपये के अमर उजाला कम्पैक्ट का खेल पेज का कोई ऐसा पन्ना नहीं होगा जिसमे से मैने क्रिकेटर्स को काट कर निकाला न हो। किताबो और फेयर कॉपी पे जिल्द भी बस क्रिकेटर्स की होती थी। 2011 मार्च - अप्रैल में मैं 10वी की बोर्ड परीक्षा दे रहा था और उधर क्रिकेट में एक दिवसीय विश्व कप चालू था। 2 अप्रैल 2011 को उधर भारत विश्व कप जीता और इधर मेरा 10वीं का आखरी पेपर खत्म हुआ। मैने विश्वकप का एक भी मैच मिस नहीं किया। सब देखा और विश्व कप फाइनल की तो आज भी पूरी कमेंट्री सुना सकता हूँ।
जब से मैने क्रिकेट देखना शुरू किया भारतीय क्रिकेट में एक ही नाम था जो तेजी से उपर की ओर जा रहा था और वो नाम था महेंद्र सिंह धोनी। बस सबकी तरह मेरा भी पसंदिदा खिलाड़ी धोनी ही बन गया था।
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M.S Dhoni Image source - BBC.COM |
फिर आप स्कूली शिक्षा से कालेज की ओर कदम रखते हैं। जहाँ चुनौतियां बढ़ती हैं और साथ में आपकी मेहनत भी। इस कालेज की व्यस्तता ने क्रिकेट के बुखार को कम किया, हालांकि सिर्फ तापमान कम हुआ था बुखार नहीं। तब भी क्रिकेट देखता था लेकिन पहले से कम।
विश्व क्रिकेट में दक्षिण अफ्रीका का एक बल्लेबाज अपनी प्रतिभा का लोहा दुनिया के हर गेंदबाज के सामने मनवा रहा था। उसने पाकिस्तान से लेकर आस्ट्रेलिया तक हर गेंदबाज की तूती बन्द कर दी थी। बल्लेबाज था मिस्टर 360 यानी की एबी डिविलियर्स। उसके लिए गली, पॉइंट ,मिड विकेट,ऑन, आफ ,स्ट्रेट मैदान का हर हिस्सा एक जैसा था। कोई ऐसी दिशा नहीं और कोई ऐसी गेंद नहीं जिसपे उसने छक्के न मारे हो। अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय क्रिकेट का सबसे तेज शतक उस बंदे के ही नाम है। डिविलियर्स मेरे लिस्ट का दूसरा सबसे पसंदिदा खिलाड़ी था।
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Ab de velliers Image source - Indianexpress.com |
कॉलेज के भी दिन खत्म हुए। फिर हम भारतीय शिक्षा नीति का शिकार हुए । जहां इंजीनीयर चुनने की परीक्षा का सिलेबस इस आधार पर नहीं बनाया जाता की सरकारी विभाग को प्रतिभावान इंजीनयर मीले बल्कि इस आधार पर तय किया जाता है की कैसे भीड़ कम किया जा सके। एक ही घिसा पिटा सिलेबस जिसे कोचिंगों में रटा रटाकर ,,,रट्टू तोते इंजीनियर बना दिए जाते है। भारत इकलौता देश होगा जहां इंजीनियर बनने के लिए तकनीक में विलक्षण बुद्धि नहीं बल्कि इतिहास ,भूगोल आदि आर्ट्स के विषय के साथ साथ इंजीनयरिंग के डेटा रटा होना चाहिए।
रटना बचपन से ही मेरी आदत में शामिल नहीं था। मैं तो 9वी में जब पहली बार न्यूटन के नियम पढ़ा तो अगले दिन लंच टाइम में ग्यारहवीं के लड़के से भौतिक विज्ञान की किताब मांगकर न्यूटन के नियम को विस्तार से पढ़ रहा था। तो आज कैसे रट लेता। तो मेंने पढा, और खूब पढ़ा। इतिहास ,भूगोल, राजनीति, सिविल इंजीनियरिंग, समाजिक विज्ञान एवम साहित्य । वो अब कुछ पढ़ा जो मुझे काबिल बना सकता था। आलम यह है की मैं यह तो डिजाइन कर सकता हूँ की एक घर कैसे भूकम्प के झटके सह सकता है। मैं रोड 100 साल तक खराब न हो इसपे मैं 1000 पन्ने की थीसिस लिख सकता हूँ। लेकिन इंजिनयरिंग के परीक्षाओं में निकटम मेरिट से बाहर होता हूं। हालांकि नॉन टेक पेपर में मेरिट 60 पे होती है तो मेरे 80 से ऊपर ही होते है। यह एक विचित्र विडम्बना है।
एक दिन मैं हाई स्कूल के बच्चों को विज्ञान पढा रहा था । अचानक एक लड़के ने सवाल किया , " सर, आपका पसंदीदा क्रिकेटर कौन है?"
मैंने तपाक से जवाब दिया ," एनडी फ्लावर और हेनरी ओलंगा।"
वो फिर पूछा ,"किस देश के खिलाड़ी है?"
मैने कहा," जिम्बाम्बे के थे।"
उसने फिर कहा ," सर ,वर्तमान खिलाड़ी में से बताईये।"
मैने कहा," धोनी और डिविलियर्स।"
अब आप भी सोच रहे होंगे मैने धोनी और डीविलियर्स पहले क्यों नहीं कहा?
यही बताने के लिए ये लिख रहा हूँ-
भारत में आप मुसलमान है तो आप जन्म से देशद्रोह के आरोप से लड़ते रहेंगे। अगर आप पढ़ेंगे नहीं तो आपको हमेशा छोटा साबित करने की कोशिश किया जाता रहेगा। यही कारण है की मुसलमान और दलित जो दूरदर्शी नेता हुए वो शिक्षा पर ज्यादा जोर दिए। क्योंकि मात्र यही एक हथियार है जिससे आप बराबरी का दर्जा पा सकते हैं। आप खैबर के युद्ध पर सिर्फ खोखला गर्व कर सकते हैं ,उससे अपने आप को परफेक्ट नहीं बना सकते। आपको अगर कुछ हासिल करना है तो पहले किताबो पे विजय हासिल करना होगा । जब आपका अपना खुद का ही इतिहास किताबो के बजाय फिल्मों से पता चले तो ये आपके पिछड़े पन की निशानी है। यह बोलने में मुझे रत्ती भर भी संदेह नहीं की भारत का मुसलमान शिक्षा के मामले में अत्यंत पिछड़ा है। आज कल के मुस्लिम नेता चाहे वो ओवैसी हो या दलितों की नेता मायावती वो माइक पर बस इसलिए चिल्लाते है ताकि उनके वोटों को ध्रुविकृत किया जा सके।इसलिए मुझे नेताओ में ओवैसी की जगह उमर खालिद और मायावती की जगह चन्द्रशेखर पसन्द है।
कॉमिक्स और कहानियों की किताबें पढ़ते पढ़ते मैं वक्त रहते काम की चीज़ पढ़ना सिख गया था। जब आप अपने देश के इकॉनमी और सोसाइटी के रवैये को एवम लोकतंत्र के काले करतूतों को समझने लगेंगे तो आपको ये समझते देर नहीं लगेगी की जिस देश में हर दूसरा बच्चा भूखा सोता हो ,जिस देश में मुझे कोई किताब खरीदने से पहले दस बार सोचना पड़ता हो। अपने जेब के व्यवहार को समझना पड़ता हो की खरीदूं की न ख़रीदू? जिस देश में आम आदमी के स्वास्थ्य के इलाज सम्बन्धी अधिकार भी सीमित हो, उसी देश में ही क्रिकेट के नाम पर IPL में अरबो रुपये ब्लैक मनी को व्हाइट कर दिया जाता है। उस व्हाइट मनी के हिस्सेदार वो सभी है जिन्हें क्रिकेट के मैदान पर या पर्दे पर हम हीरो समझते रहते हैं। उसमे शाहरुख खान से लेकर महेंद्र सिंह धोनी तक सब नाम आते हैं।
ये दौर था जब मेरे अंदर का क्रिकेट खत्म होता रहा । पहले देखना खत्म हुआ और फिर खेलना भी हालांकि सिर्फ खेलने में कोई बुराई नहीं है। यह एक मनोरंजन का तरीका मात्र है।
किताबे पढ़ते पढ़ते एक अध्याय आया लोकतंत्र का। लोकतंत्र का इतिहास भी बड़ा अजीब है। गहराई से आप इसकी छानबीन करेगे तो आपको ये कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम में राजा दुष्यंत के लिए लिखी पंक्तियों में भी मिलेगा। आगे आईये फिर आपको ये चाणक्य के अर्थशास्त्र में राजतंत्र में सोया हुआ लोकतंत्र भी मिलेगा। लेकिन आपको लोकतन्त्र के मूल अस्तित्व के लिए इंग्लैंड आना होगा। इंग्लैंड से वक्त के साथ यूरोप में घूमता हुआ यह एशिया आता है। इसी प्रक्रिया में भारत के लोकतन्त्र का गठन होता है। फिर यह अफ्रीकी देशो से होकर गुजरता है।
लोकतन्त्र को पाने के लिए हर एक राजतंत्र में सताए लोगों ने बड़ी लड़ाईया लड़ी। लड़ाईया गौरव की और अपने अस्तित्व की लड़ाई। वक्त के साथ हम उस गौरव को भूल गए। जब आप लोकतन्त्र को पढ़ते पढ़ते 21वी सदी में आएंगे तो 10 फरवरी 2003 को लोकतन्त्र के किस्सों में एक छोटा सा अध्याय जुड़ता है। हममें से कुछ होते है जिनके ऊपर न्याय का सनक हावी होता है। ऐसे ही दो सनकी बागी क्रिकेटर का ये परिचय है जो मेरे सबसे पसंदीदा क्रिकेटर है -
तारीख थी 10/02/2003 ,,,क्रिकेट टीम थी जिम्बाब्वे,,,,वर्ल्डकप का मैच
जिम्बाब्वे के सारे दर्शक इंतजार में थे कि एंडी फ्लॉवर की बल्लेबाजी के जलवे देखने को मिलेंगे। वही एंडी फ्लॉवर जिनकी प्रतिभा को सचिन तेंदुलकर, स्टीव वा और अरविंद डिसिल्वा जैसो के समकक्ष माना जाता है।
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Andy Flower is stumping Image Source - Sportskeeda.com |
वसीम अकरम के अनुसार उनके सामने बाउंसर फेंकना मूर्खता थी और बाउंसर के वे श्रेष्ठतम खिलाड़ी थे, और मैंने आज तक स्वीप का उपयोग करने वाला ऐसा खिलाड़ी नहीं देखा जो अनिल कुंबले को मज़ाक बना दे। फ्लॉवर के स्वीप शॉट के आगे कुंबले धराशायी ही होते थे।
उत्साह से भरे दर्शक ग्राउंड पर आने वाली टीम पे नजर टिकाए हुए थे। इससे पहले की कोई कुछ और देखता सबने देखा की एंडी फ्लॉवर और उनके साथी खिलाड़ी हेनरी ओलंगा अपनी बाह पर काला पट्टी बांधे हुए थे। जब उनसे कारण पूछा गया तो उन्होंने बोला की वो विरोध कर रहे है "डेथ ऑफ डेमोक्रेसी" यानी की "लोकतंत के मौत" की। वो विरोध कर रहे थे जिम्बाब्वे के तानाशाह रॉबर्ट मुगाबे की।
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Henry Olanga Image source - Lallantop.com |
आप मुगाबे की तानाशाही का अंदाजा बस इस बात से लगा लीजिये की उसने चुनाव प्रचार में एक तस्वीर और स्लोगन का प्रचार किया। तस्वीर में एक एक्सीडेंट हुए कार और उसके पास मरे लोगों की तस्वीर थी और स्लोगन था -
अगर आप नहीं चाहते की आपके साथ भी ऐसा हो तो हमे वोट दें।
फ्लॉवर और ओलंगा इसी तानाशाह का विरोध कर रहे थे। अगले मैच में उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें समझाया लेकिन वो नहीं माने और फिर काले पट्टी के साथ उतरे। दोनों जानते थे की इसका अंजाम बुरा होगा। ओलंगा ने तो ये भी कह दिया था की -
अब वे मुझे ले जाना चाहें तो ले जाएं; वे जानते हैं मैं कहां रहता हूं!
उन्हें निष्कासन में सारी जिंदगी वापिस ना आ पाने की सजा मिली। चुकी यह वैश्विक खबर में सुर्खियों में था तो उनकी हत्या तो सरकार को बुरा दिखाती इसलिए सरकार ने चरित्रहत्या का खेल शुरु करके हेनरी को असली अश्वेत मानने से इंकार कर दिया और विडंबना देखिये कि जो गोरों द्वारा अश्वेत पर दमन की बात उठाने वाला देश का पहला अश्वेत खिलाडी था उसे काले शरीर में गोरा कहा गया.
जिम्बाब्वे से क्रिकेट क्रमशः समाप्त हो गया।
हेनरी को हम केवल तेंडुलकर की विकेट लेने और अगले मैच में पिटाई खाने के लिए जानते हैं. कुछ समय बाद खेल से संन्यास लेकर हेनरी ने अपना जीवन चैरिटी में लगाने का निर्णय लिया।
एंडी फ्लॉवर के रिवॉर्ड भी वही रुक गए उनका नाम जहाँ हो सकता था वहाँ नहीं है खेल की किताबों में. उनका एवरेज जरूर देखकर सोचना होता है कि यह बल्लेबाज विलक्षण होगा।
वे हमेशा फ्रंट फुट पर खेलते थे और रॉबर्ट मुगाबे जैसा नृशंस तानाशाह भी उन्हें बैकफुट पर नहीं रख सका।
जो हुआ वह केवल किसी व्यक्ति, टीम, या क्रिकेट के लिए शर्मनाक नहीं है। वह ऐसा अध्याय है जो नेपथ्य में गूँजता है "एक विहंगम दृश्य-अफ्रीका की दुर्दशा और विश्वसमुदाय द्वारा अवहेलना"। हाँ क्यूँकि विश्व समुदाय ने जिम्बाब्वे के लिए कुछ नहीं किया।
पता नहीं इसलिए कि वहाँ पेट्रोलियम नहीं निकलता या इसलिए कि क्रिकेट देखने वालों में कोई मुल्क अमेरिका नहीं है।
अस्वीकरण एवम उपसंहार - भारतीय क्रिकेटर्स को मैं सीधे तौर पर संवेदनहीन कहूंगा। हों सकता है की मैं ऐसा बोलकर राष्ट्रवादीयों की नजर में देशद्रोही हो जाऊं लेकिन मुझे जरा सा भी इस बात का परवाह नहीं है। उनकी संवेदनहीनता इस बात से ही झलक जाती है की देश में कुछ भी हो जाए लेकिन वो ऑस्ट्रेलिय में जंगल में लगी आग के प्रति संवेदना प्रकट कर सकते हैं लेकिन सड़को पे बहते खून और तानाशाही के लिए नहीं बोल सकते। मेरे एक दोस्त ने मुझसे इस विषय पर बोला कि उनके कहने या ना कहने से क्या बदल जाएगा?
बदल तो कुछ भी नहीं जाएगा क्योंकिं जो देश गांधी के चरखा पंथ से नही बदल पाया वो किसी की संवेदना या विरोध से क्या बदल जाएगा। जवाब है सीधा सा कुछ भी नहीं बदलेगा । लेकिन स्पाइडर मैन के अंकल बेन की एक सीधी सी बात हमेशा से इसपर हावी होता है - "Great power comes great responsibility"........
वो सेलिब्रिटी हैं ,उनके टीवी स्क्रीन पर बिना तेल वाले चिप्स खाने से लोग अंकल चिप्स भूल वही चिप्स खाना शुरू कर देते हैं। इन्हें सभ्य भाषा में Influencer बोला जाता है। उनके बोलने से कुछ बदले या न बदले लेकिन सड़क से लेकर संसद तक इंसाफ और हक के लिए लड़ने वालों को एक अप्रत्यक्ष हिम्मत तो जरूर मिलती है। आख़िर आप भी उसी समाज से निकलकर इतने बड़े क्रिकेटर बने हैं । उसी समाज में आपके सामने गलत हो रहा है और आप चुप है तो आप संवेदनहीन हैं। आप शांति से ग्राउंड पर शतक लगा कर विश्वकीर्तिमान बना रहे हैं और वही आपके देश में उसी दिन 200 लोगो को जेल में डाल दिया जाए बस इसलिए की वो अपनी अचानक बढ़ी हुई फीस को कम कराने के लिए सड़को पर आ गए थे और आप शांत एवम खुश हैं तो आप संवेदनहीन हैं। आप गरीब से क्रिकेटर बनकर सिर्फ अमीर ही नहीं हुए बल्कि आप पूंजीवाद के एक सिपाही भी बन गए हैं। जो अप्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र और समाजवाद को कमजोर करने में सहायक हैं। मैने कहीं पढ़ा था अगर आप अन्याय देखते हैं और मूंह बन्द कर नजर घुमा कर भूल जाते है तो आप भी उस अन्याय में भागीदार है। भारतीय क्रिकेटर्स इसी गूंगे अन्यायी के कैटेगरी में आते हैं।
यही वजह है की रोहित शर्मा और विराट कोहली ने क्रिकेट जगत में दुनिया भर में अपने टैलेंट का लोहा मनवाया लेकिन मुझे वो आकर्षित न कर सके। धोनी भारतीय क्रिकेट के मेरे पहले और आखरी आकर्षण थे। लेकिन आज जब भी बात आती है पसंदीदा क्रिकेटर्स की तो जुबान पर सबसे पहले हेनरी ओलंगा और एनडी फ्लॉवर का नाम आता है। क्योंकि वो सिर्फ किसी क्रिकेट के ही नहीं बल्कि इंसानीयत के हीरो हैं।
रॉबर्ट बुगाबे की तानाशाही चरम पर थी और एक दिन उसका भी अंत हुआ। लोकतन्त्र की जीत हूई और जिम्बाब्वे कि जनता इस लड़ाई के अपने पहले दो योद्धाओं को कभी भी अपने मन से निकाल न सकेगी जिन्होंने अपना कैरियर और जीवन अब कुछ दांव पर लगा कर आवाज बुलन्द किया था। न केवल खेल जगत ही बल्कि पूरी मानवता उनका सम्मान करती है।
हालांकि अगर मुझसे सिर्फ इतना पूछा जाए कि किसका खेल देखना पसन्द है तो उसमें मैं धोनी और डिविलयर्स का नाम लूंगा।
By - Kashish Bagi
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