UA-149348414-1 आखिर क्यों बीमार होने के बावजूद एक जवान को छुट्टी नहीं दिया जाता?

आखिर क्यों बीमार होने के बावजूद एक जवान को छुट्टी नहीं दिया जाता?

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अक्सर देखा या सुना गया है कि फलां जवान बीमार हो गया  और वह अपना इलाज कराने के लिए छुट्टी मांग रहा था लेकिन उसको छुट्टी नहीं दी गई। आखिर ऐसा क्यों किया जाता है जबकि बहुत से फोर्स के पास इतनी अच्छी चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध नहीं है,खासकर उन पोस्ट में जो हेडक्वार्टर से दूर स्थापित हैं।

               क्या फौजी अफसर नहीं चाहते कि उनके जवान स्वस्थ और सुरक्षित रहें या उनकी नजर में जवानों के जान कि कोई अहमियत नहीं होती है? तो आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है?

               सबसे पहली बात फौज में किसी को बीमार होने की इजाजत नहीं है। इसका मतलब यह है कि फौज में किसी भी बीमारी से बचने के लिए दिशा निर्देश समय-समय पर दिए जाते हैं ताकि हर एक जवान बीमारी के बारे में जानकारी रखे और उससे बचने के तरीकों को अमल में लाएं।खुद को स्वस्थ रखें और अपने साथी के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें।
                यही कारण है कि फौज में बिना मच्छरदानी के सोना एक अपराध माना जाता है चाहे मौसम कोई भी हो। त्रिपुरा मिजोरम और छत्तीसगढ़ जैसे मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में मच्छरदानी को 25% Deltamethein दवा घोलकर उसमें भीगाकर सुखा दिया जाता है ताकि मच्छरदानी के ऊपर मच्छर ना बैठे और शरीर का कोई भाग मछरदानी से स्पर्श करता हो तो भी मच्छर न काट पाए। ऐसे मलेरिया ग्रस्त क्षेत्रों में पोस्टिंग से पहले Doxycyclomine कैप्सूल 2 दिन खाने के लिए दिया जाता है और वहां से वापस लौटने के बाद 1 महीने तक लगातार यह कैप्सूल खाने के लिए कहा जाता है। यदि ऐसे क्षेत्रों में 6 महीने से ज्यादा समय के लिए पोस्टिंग होती है तो तो 2 दिन जाने से पहले और 6 महीने वहां रहते हुए और 1 महीने आने के बाद यह कैप्सूल खाना पड़ता है। पहले Meploquine 250 mg दिया जाता था जिसको हफ्ते में एक बार खाना पड़ता था। लेकिन बाद में इसको बंद कर दिया गया क्योंकि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के लिए यह घातक साबित हुआ।
                      इन सब सावधानियों के बावजूद भी अगर कोई जवान बीमार होता है या खासकर उसको मलेरिया हो जाता है तो उसको छुट्टी नहीं भेजा जाता है। इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि हर क्षेत्र में उस बीमार व्यक्ति जैसे मरीज नहीं होते हैं जिसकी वजह से मार्केट में उससे संबंधित दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पाती है। अगर कोई व्यक्ति छुट्टी जाता है तो उसके क्षेत्र में उस बीमारी से संबंधित दवाइयां नहीं मिल पाती है तो उसको जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे जरूरत से ज्यादा भागदौड़ करना पड़ेगा और ज्यादा परेशानी उठानी पड़ेगी। हो सकता है उसका इलाज ढंग से ना हो पाने के कारण उसकी मौत हो जाए। जबकि वह जहां बीमार हुआ है वहां उस बीमारी से संबंधित दवाइयां मार्केट में आसानी से उपलब्ध होते हैं और इलाज आसानी से हो जाता है। ऐसे बीमार व्यक्ति को हेड क्वार्टर के मेडिकल रूम में भर्ती कर दिया जाता है और एक जवान (उसके Buddy pair) को उसकी देखरेख के लिए निर्धारित कर दिया जाता है। और जवान जितने दिन तक बेड रेस्ट करता है इतना दिन उसका मेडिकल लीव कटता है।
               छुट्टी न देने का एक और मुख्य कारण है कि बीमार व्यक्ति इतना लंबा सफ़र अकेले कैसे तय करेगा कहीं रास्ते में उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई और उसको कुछ हो गया तो उसकी जिम्मेदार कौन होगा? उसकी मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा?
      कुछ एक परिस्थितियों में यदि जवान की हालत बहुत ज्यादा खराब होती है और उसका घर जाना जरूरी होता है। तो उसके साथ उसके क्षेत्र के किसी जवान को भी छुट्टी भेजा जाता है और उस जवान की जिम्मेदारी बनती है कि उसको सही सलामत घर तक छोड़ कर आएगा।
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